लेखनी कविता - रामू का कबूतर - बालस्वरूप राही
रामू का कबूतर / बालस्वरूप राही
रामू जी ने एक कबूतर बड़े शौक से पाला,
थोड़ा-थोड़ा गोरा था वह, थोड़ा- थोड़ा काला।
गरदन फुला, पंख फैला कर बड़े तमाशे करता,
पर पूसी को देख आँख मिच जाती, उस से डरता।
पाठ पढ़ाया उस को- "बोला, अच्छा हूँ, अच्छा हूँ।"
आँख नचा कर बोल उठा वह- "गुटरूँ गूँ, गुटरूँ गूँ।"
जब पढ़ने की बारी आती झटपट वह सोता था,
कैसे पाठ याद करता वह क्या रट्टू तोता था !